हिन्दी ऑनलाइन जानकारी के मंच पर आज हम पढ़ेंगे रामधारी सिंह दिनकर के विचार, Ramdhari Singh Dinkar Quotes In Hindi, Motivational Quotes Of Ramdhari Singh Dinkar.
Ramdhari Singh Dinkar Quotes In Hindi, रामधारी सिंह दिनकर के विचार -:
~ सतत चिन्ताशील व्यक्ति का कोई मित्र नहीं बनता।
~ सौभाग्य न सब दिन सोता है,
देखें, आगे क्या होता है।।
~ समर शेष है, नहीं पाप का भागी केवल व्याध
जो तटस्थ हैं, समय लिखेगा उनके भी अपराध।।
~ वसुधा का नेता कौन हुआ? भूखण्ड-विजेता कौन हुआ?
अतुलित यश क्रेता कौन हुआ? नव-धर्म प्रणेता कौन हुआ?
जिसने न कभी आराम किया, विघ्नों में रहकर नाम किया।
~ छोड़ो मत अपनी आन, सीस कट जाए
मत झुको अनय पर भले व्योम फट जाए
दो बार नहीं यमराज कण्ठ धरता है
मरता है जो एक ही बार मरता है।।
~ रोटी के बाद मनुष्य की सबसे बड़ी कीमती चीज उसकी संस्कृति होती है।
~ याचना नहीं, अब रण होगा,
जीवन-जय या कि मरण होगा।
~ बढ़कर विपत्तियों पर छा जा, मेरे किशोर! मेरे ताजा!
जीवन का रस छन जाने दे, तन को पत्थर बन जाने दे।
तू स्वयं तेज भयकारी है, क्या कर सकती चिनगारी है?
~ मृतकों से पटी हुई भू है,
पहचान, इसमें कहाँ तू है।
~ आदमी अत्यधिक सुखों के लोभ से ग्रस्त है
यही लोभ उसे मारेगा
मनुष्य और किसी से नहीं,
अपने आविष्कार से हारेगा।।
~ हम तर्क से पराजित होने वाले नहीं है।
हाँ, यदि कोई चाहे तो प्यार, त्याग और चरित्र से हमें जीत सकता है।
~ माँगेगी जो रणचण्डी भेंट, चढ़ेगी!
लाशों पर चढ़ कर आगे फ़ौज बढ़ेगी!
~ ऊँच-नीच का भेद न माने, वही श्रेष्ठ ज्ञानी है,
दया-धर्म जिसमें हो, सबसे वही पूज्य प्राणी है।
~ हम हैं शिवा-प्रताप रोटियाँ भले घास की खाएंगे
मगर, किसी ज़ुल्मी के आगे मस्तक नहीं झुकायेंगे
देंगे जान , नहीं ईमान,
जियो जियो अय हिन्दुस्तान।।
~ सूर्यास्त होने तक मत रुको।
चीजे तुम्हें त्यागने लगें, उससे पहले तुम्हीं उन्हें त्याग दो।
~ कोई प्रशंसा ऐसी नहीं जो मुझे याद रहे,
कोई निंदा ऐसी नहीं जो मुझे उभार दे।
नास्ति का परिणाम नास्ति है।
~ स्वर्ग के सम्राट को जाकर खबर कर दे
रोज ही आकाश चढ़ते जा रहे हैं वे,
रोकिये, जैसे बने इन स्वप्नवालों को,
स्वर्ग की ही ओर बढ़ते आ रहे हैं वे!
~ तन मन धन तुम पर कुर्बान,
जियो जियो अय हिन्दुस्तान।।
~ हवा में कब तक ठहरी हुई
रहेगी जलती हुई मशाल?
थकी तेरी मुट्ठी यदि वीर,
सकेगा इसको कौन सँभाल?
~ आजादी रोटी नहीं, मगर, दोनों में कोई वैर नहीं,
पर कहीं भूख बेताब हुई तो आजादी की खैर नहीं।
~ वैभव विलास की चाह नहीं,
अपनी कोई परवाह नहीं।
~ सच है, विपत्ति जब आती है, कायर को ही दहलाती है,
शूरमा नहीं विचलित होते, क्षण एक नहीं धीरज खोते,
विघ्नों को गले लगाते हैं, काँटों में राह बनाते हैं।
~ तुम्हारी निन्दा वही करेगा जिसकी तुमने भलाई की।
~ जन-जन स्वजनों के लिए कुटिल यम होगा,
परिजन, परिजन के हित कृतान्त-सम होगा ।
कल से भाई, भाई के प्राण हरेंगे,
नर ही नर के शोणित में स्नान करेंगे।
~ प्रकृति नहीं डरकर झुकती है
कभी भाग्य के बल से
सदा हारती वह मनुष्य के
उद्यम से श्रमजल से।
~ पुरुष चूमते तब
जब वे सुख में होते हैं,
नारी चूमती उन्हें
जब वे दुख में होते हैं।
~ और, वीर जो किसी प्रतिज्ञा पर आकर अड़ता है,
सचमुच, उसके लिए उसे सब-कुछ देना पड़ता है।
~ हुँकारों से महलों की नींव उखड़ जाती,
साँसों के बल से ताज हवा में उड़ता है,
जनता की रोके राह, समय में ताव कहाँ ?
वह जिधर चाहती, काल उधर ही मुड़ता है।
~ सुयश के पीछे नहीं दौड़ना, धन के पीछे नहीं दौड़ना।
जो मिला सो मेरा, जो नहीं मिला वह किसी अधिकारी मानव – बंधु का है।
~ कविता वह सुरंग है जिसमें से गुजर कर
मानव एक संसार को छोड़कर दूसरे संसार में चला जाता है।
~ पूछो मेरी जाति,शक्ति हो तो,मेरे भुजबल से,
रवि-समान दीपित ललाट से और कवच-कुण्डल से,
पढ़ो उसे जो झलक रहा है मुझमें तेज-प्रकाश,
मेरे रोम-रोम में अंकित है मेरा इतिहास।
~ लोग हमारी चर्चा ही न करें, यह अधिक बुरा है।
वे हमारी निंदा करें, यह कम बुरा है।
~ सम्बन्ध कोई भी हों लेकिन
यदि दुःख में साथ न दें अपना,
फिर सुख में उन सम्बन्धों का
रह जाता कोई अर्थ नहीं।
~ वाणी का वर्चस्व रजत है,
किंतु, मौन कंचन है।
~ तुम स्वयं मृत्यु के मुख पर चरण धरो रे
जीना हो तो मरने से नहीं डरो रे
~ पीकर जिनकी लाल शिखाएँ
उगल रही सौ लपट दिशाएं,
जिनके सिंहनाद से सहमी
धरती रही अभी तक डोल
कलम, आज उनकी जय बोल।
~ एक भेद है और वहां निर्भय होते नर -नारी,
कलम उगलती आग, जहाँ अक्षर बनते चिंगारी।।
Motivational Quotes Of Ramdhari Singh Dinkar In Hindi -:
~ जब नारी किसी नर से कहे,
प्रिय! तुम्हें मैं प्यार करती हूँ,
तो उचित है, नर इसे सुन ले ठहर कर,
प्रेम करने को भले ही वह न ठहरे।
~ कुंकुम? लेपूं किसे? सुनाऊँ किसको कोमल गान?
तड़प रहा आँखों के आगे भूखा हिन्दुस्तान
~ सदियों की ठण्डी-बुझी राख सुगबुगा उठी,
मिट्टी सोने का ताज पहन इठलाती है
दो राह, समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो,
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।
~ जब खुलकर लोग तुम्हारी निंदा करने लगे
तब तुम समझो कि तुम्हारी लेखनी सफल हुई।।
~ नारी जिस प्रेम को सदा जगाए रखना चाहती है,
नरों में वह प्रेम केवल कलाकारों में अधिक से अधिक काल तक जीवित रहता है।
~ सुनुँ क्या सिंधु, मैं गर्जन तुम्हारा
स्वयं युग-धर्म की हुँकार हूँ मैं
कठिन निर्घोष हूँ भीषण अशनि का
प्रलय-गांडीव की टंकार हूँ मैं।।
~ थर-थर तीनों लोक काँपते थे जिनकी ललकारों पर
स्वर्ग नाचता था रण में जिनकी पवित्र तलवारों पर
हम उन वीरों की सन्तान,
जियो जियो अय हिन्दुस्तान।।
~ जनम कर मर चुका सौ बार लेकिन
अगम का पा सका क्या पार हूँ मैं।।
~ ज्ञान का साहित्य मनुष्य किसी भी भाषा में लिख सकता है,
जिससे उसने भलीभाँति सीख लिया हो।
किन्तु रस का साहित्य वह केवल अपनी भाषा में रच सकता है।
~ उद्देश्य जन्म का नहीं कीर्ति या धन है
सुख नहीं धर्म भी नहीं, न तो दर्शन है।
विज्ञान ज्ञान बल नहीं, न तो चिन्तन है
जीवन का अन्तिम ध्येय स्वयं जीवन है।।
~ सबसे स्वतन्त्र रस जो भी अनघ पिएगा
पूरा जीवन केवल वह वीर जिएगा।।
~ आरती लिए तू किसे ढूँढ़ता है मूरख,
मन्दिरों, राजप्रासादों में, तहखानों में?
देवता कहीं सड़कों पर गिट्टी तोड़ रहे,
देवता मिलेंगे खेतों में, खलिहानों में ।
~ महाप्रलय की ओर सभी को इस मरू में चलते देखा,
किस से लिपट जुडाता ? सबको ज्वाला में जलते देखा।
~ नित जीवन के संघर्षों से जब टूट चुका हो अन्तर्मन ,
तब सुख के मिले समन्दर का रह जाता कोई अर्थ नहीं ।
~ सुंदरता को जगी देखकर जी करता मैं भी कुछ गाऊं,
मैं भी आज प्रकृति पूजन में निज कविता के दीप जलाऊं।
ठोकर मार भाग्य को फोड़े, जड़ जीवन तजकर उड़ जाऊं,
उतरी कभी न भू पर जो छवि, जग को उसका रूप दिखाऊं।
~ स्वार्थ हर तरह की भाषा बोलता है
हर तरह की भूमिका अदा करता है,
यहाँ तक की वह निःस्वार्थ की भाषा भी नहीं छोड़ता।।
~ शत्रु से मैं खुद निबटना जानता हूँ,
मित्र से पर देव! तुम रक्षा करो।
~ जिसके मस्तक के शासन को
लिया हृदय ने मान,
वह कदर्य भी कर सकता है
क्या कोई बलिदान ?
~ कह दो उनसे झुके अगर तो जग मे यश पाएंगे
अड़े रहे अगर तो ऐरावत पत्तों से बह जाऐंगे।।
~ जब नाश मनुज पर छाता है,
पहले विवेक मर जाता है।
~ अंगारों पर चला तुम्हें ले सारा हिन्दुस्तान!
प्रताप की विभा, कृषानुजा, नमो, नमो!
नमो स्वतंत्र भारत की ध्वजा, नमो, नमो!
~ मुझे क्या गर्व हो अपनी विभा का
चिता का धूलिकण हूँ, क्षार हूँ मैं
पता मेरा तुझे मिट्टी कहेगी
समा जिसमें चुका सौ बार हूँ मैं।।
~ आदमी भी क्या अनोखा जीव है !
उलझनें अपनी बनाकर
आप ही फँसता, और फिर
बेचैन हो जगता, न सोता है।
~ कलमें लगाना जानते हो
तो ज़रूर लगाओ,
मगर ऐसी, कि फलों में
अपनी मिट्टी का स्वाद रहे।।
~ दूसरों की निंदा करने से आप
अपनी उन्नति को प्राप्त नहीं कर सकते।
आपकी उन्नति तो तभी होगी जब आप अपने आप को
सहनशील और अपने अवगुणों को दूर करेंगे।
~ तेजस्वी सम्मान खोजते नहीं गोत्र बतला के,
पाते हैं जग में प्रशस्ति अपना करतब दिखला के।
हीन मूल की ओर देख जग गलत कहे या ठीक,
वीर खींच कर ही रहते हैं इतिहासों में लीक।
~ मूल जानना बड़ा कठिन है, नदियों का, वीरों का,
धनुष छोड़ कर और गोत्र क्या होता रणधीरों का ?
पाते हैं सम्मान तपोबल से भूतल पर शूर,
जाति जाति का शोर मचाते केवल कायर क्रूर।
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