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राम मनोहर लोहिया के विचार Dr. Ram Manohar Lohia Quotes in Hindi -:

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राम मनोहर लोहिया के सामाजिक एवं राजनीतिक विचार, ram manohar lohia quotes in hindi

~ अगर सड़कें खामोश हो जाएं तो संसद आवारा हो जाएगी।

~ पेट है खाली मारे भूख, बंद करो दामों की लूट।

~ राजनीति एक अल्पकालिक धर्म है और धर्म दीर्घकालिक राजनीति।

~ भारत में असमानता सिर्फ आर्थिक नहीं है, यह सामाजिक भी है।

~ प्रधानमंत्री का काम रोना-बिसूरना नहीं, देश का नेतृत्व करना और उसका हौसला बढ़ाना होता है।

~ बड़ों के सामने विनय और शिष्टाचार का आचरण सहज और सुगम मार्ग है।

~ अंग्रेजों ने बंदूक की गोली और अंग्रेजी की बोली से हम पर राज किया।

~ सामाजिक परिवर्तन के बडे़ काम जब प्रारंभ होते हैं, तो समाज के कुछ लोग आवेश में आकर इसका पूर्ण विरोध करते हैं।

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~ जब भूख और जुल्म दोनों बढ़ जाते हैं तो चुनाव से पहले भी सरकारें बदली जा सकती है।

~ (इस्लामी दबाव के सामने) आत्मसमर्पण को सामंजस्य कहना कायरता है।

~ सच्चे लोकतंत्र की शक्ति सरकारों के उलट-पुलट में बसती है।

~ बलात्कार और वायदाखिलाफी को छोड़कर मर्द-औरत में हर रिश्ता जायज़ है।

~ बिना रचनात्मक कार्य के सत्याग्रह, क्रिया के बिना लिखे वाक्य जैसा होता है।

~ जाति तोड़ने का सबसे अच्छा उपाय है, कथित उच्च और निम्न जातियों के बीच रोटी और बेटी का संबंध।

~ जब हम किसी चीज का विरोध करते हैं तो क्रोध और करुणा का संतुलन होना चाहिए, अन्यथा अराजक स्थिति पैदा होगी।

~ जाति प्रथा के विरुद्ध विद्रोह से ही देश में जागृति आयेगी और उसे नवजीवन मिलेगा। और उसका पुनरुत्थान होगा।

~ जाति और धर्म के नाम पर राजनीति करने पर इतिहास में हमेशा खून-खराबा हुआ है।

~ अपने आर्थिक उद्देश्य में पूंजीवाद बड़े पैमाने पर उत्पादन, कम लागत और मालिकों को लाभ पहुंचाना चाहता है।

~ भारत में कौन राज करेगा ये तीन चीजों से तय होता है। – ऊँची जाति, धन और ज्ञान। जिनके पास इनमे से कोई दो चीजें होती हैं वह शासन कर सकता है।

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~ ज़िन्दा कौमें पाँच वर्ष इंतज़ार नहीं करती, वह किसी भी सरकार के गलत कदम का फौरन विरोध करती हैं।

~ मैं भारतीय इतिहास का ऐसा एक भी काल नहीं जानता जिसमें कट्टरपंथी हिंदू धर्म भारत में एकता या ख़ुशहाली ला सका हो।

~ हम उस क्रांति के आकांक्षी हैं जिसमें क्रोध और करुणा का सम्मेलन हुआ हो। स्पर्धा और घृणा से प्राप्त क्रांति से हमें कोई उम्मीद नहीं है।

~ जाति का ऐसा अभेद्द गढ़ या किला बन गया है, जो तोडा नहीं जा सकता।

~ औरत कोई भी हो। चाहे ऊंची जाति की या नीची जाति की। सबको मैं पिछड़ा समझता हूँ। औरत को हिंदुस्तान या दुनिया में दबा करके रखा गया है।

~ मर्यादा केवल न करने की नहीं होती है, करने की भी होती है। बुरे की लकीर मत लांघो, लेकिन अच्छे की लकीर तक चहल पहल होनी चाहिए।

~ भडभड बोलने वाले क्रांति नहीं कर सकते, ज्यादा काम भी नहीं कर सकते। तेजस्विता की जरूरत है, बकवास की नहीं।

~ रोटी उलटते-पलटते रहो, ताकि वह ठीक से पके। एकतरफा सिक रही रोटी जल जाती है, पकती नहीं। वैसे ही सत्ता को भी उलटते रहो, ताकि जनता का भला हो सके।

~ मृत्यु के बाद कम से कम सौ वर्षों तक प्रतीक्षा करो। सौ वर्षों के बीतने के बाद भी यदि लोग उस व्यक्ति को याद करें तब उसकी मूर्ति या स्मारक के बारे में सोचो।

~ जाति अवसरों को रोकती है। अवसर न मिलने से योग्यता कुंठित हो जाती है। यह कुंठित योग्यता फिर अवसरों को बाधित करती है।

~ हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा बने, कोई गुरेज नहीं। लेकिन प्रादेशिक भाषाओं के महत्व को भी प्राथमिकता देनी होगी तभी हिंदी का मूल सैद्धांतिक स्वरुप ले सकेगा।

~ चुनाव, प्रत्याशियों की हार-जीत से कहीं आगे, पार्टीयों द्वारा अपनी नीतियों व सिद्धांतों को जनता के बीच ले जाने के सुनहरे अवसर होते हैं।

~ यदि एक समाजवादी सरकार बल प्रयोग करे। जिसके परिणामस्वरूप कुछ लोगों की मौत हो जाए तो तो उसे शासन करने का कोई अधिकार नहीं है।

~ जैसे हाथ लुंज हो जाने पर सहारा देते हैं और तब हाथ काम करने लगता है। उसी तरह इन नब्बे फीसदी दबे हुए लोगों को सहारा देना होगा। उस समय तक जब तक कि हिन्दुस्तान में बराबरी न आ जाए।

~ इस देश की स्त्रियों का आदर्श सीता सावित्री नहीं, द्रौपदी होनी चाहिए। भारतीय नारी द्रौपदी जैसी हो, जिसने कभी भी किसी पुरुष से दिमागी हार नहीं खाई।

~ नारी को गठरी के समान नहीं बल्कि इतना शक्तिशाली होना चाहिए कि वक्त पर पुरुष को गठरी बना अपने साथ ले चले।

~ राम, कृष्ण और शिव भारत में पूर्णता के तीन महान स्वप्न हैं। राम की पूर्णता मर्यादित व्यक्तित्व में है, कृष्ण की सम्पूर्ण या उन्मुक्त व्यक्तित्व में शिव की असीमित व्यक्तित्व में लेकिन हर एक पूर्ण हैं।

~ वेद, आरण्यक, ब्राह्मण तथा उपनिषद के आधार पर हिन्दू धर्म में उदारवाद और कट्टरता की लड़ाई पिछले पांच हजार सालों से भी अधिक समय से चल रही है और उसका अंत अभी भी दिखाई नहीं पड़ता। लेकिन जहाँ तक बात रही मनुस्मृति को जलाने की तो जो किताब मनुष्य को मनुष्य न समझे उसे नष्ट होना ही चाहिए।

~ अंग्रेजी का प्रयोग मौलिक चिंतन को बाधित करता है। आत्महीनता की भावना पैदा करता है और शिक्षित और अशिक्षित के बीच खाई बनाता है। इसलिए आइये हम सब मिलकर हिंदी को अपना पुराना गौरव लौटाएं।

~ हमेशा याद रखना चाहिए कि यौन संबंधों में सिर्फ दो अक्षम्य अपराध हैं। – बलात्कार और झूठ बोलना या वायदा तोडना। एक तीसरा अपराध दूसरे को चोट पहुँचाना या पीड़ा पहुँचाना भी है जिससे जहाँ तक मुमकिन हो बचना चाहिए।

~ अर्थव्यवस्था में एक माध्यम के तौर पर अंग्रेजी का प्रयोग काम की उत्पादकता को घटाता है। शिक्षा में सीखने को कम करता है और रिसर्च को लगभग ख़त्म कर देता है, प्रशासन में क्षमता को घटाता है और असमानता तथा भ्रष्टाचार को बढ़ाता है।

~ चार हजार साल या उससे भी अधिक समय पहले कुछ हिंदुओं के कान में दूसरे हिंदुओं के द्वारा सीसा गला कर डाल दिया जाता था और उनकी जबान खींच ली जाती थी क्‍योंकि वर्ण व्यवस्था का नियम था कि कोई शूद्र वेदों को पढ़े या सुने नहीं।

~ जात-पात भारतीय जीवन में सबसे ताकतवर प्रथा रही है। जो इसके सिद्धांत को स्वीकार नहीं करते वे भी व्यवहार में ऐसे मान कर ही चलते हैं। जिन्दगी जाति की सीमाओं के अंदर ही चलती है।

~ मिडल स्कूल तक शिक्षा मुफ्त और अनिवार्य होनी चाहिए और उच्च स्तर पर शैक्षिक सुविधाएं मुफ्त या सस्ते में उपलब्ध कराई जानी चाहिए। खासतौर से अनुसूचित जाति, जनजाति और समाज के अन्य गरीब वर्गों को। मुफ्त या सस्ती आवासीय सुविधाएं भी उपलब्ध कराई जानी चाहिए।

~ मैं मानकर चलता हूँ कि तानाशाही प्रणाली को दस, बीस या पचास मिलियन लोगों को खत्म करने का इरादा करना पड़ेगा। जब लोग नए समाजों और नई सभ्यताओं का निर्माण करने की बात सोचते हैं तब धार्मिक और राजनीतिक व्यक्तियों से ज्यादा क्रूर कोई नहीं होता। क्योंकि ये धार्मिक और राजनीतिक व्यक्ति अपने आदर्श पर मोहित होते हैं और उस आदर्श को लाने के प्रयास में वे कोई भी कीमत देने को तैयार होते हैं।

~ जितने अंग्रेजी अख़बार भारत में छपते हैं, उतने दुनिया के किसी भी पूर्व गुलाम देश में नहीं छपते। भारत की तरह अंग्रेजी के अन्य गुलाम देशों की संख्या लगभग पचास रही है। लेकिन अंग्रेजी का इतना दबदबा कहीं नहीं है। इसीलिए भारत आजाद होते हुए भी गुलाम है।

~ हमें समृद्धि बढानी है, कृषि का विस्तार करना है, फैक्ट्रियों की संख्या अधिक करनी है। लेकिन हमें सामूहिक सम्पत्ति बढाने के बारे में सोचना चाहिए। अगर हम निजी सम्पति के प्रति प्रेम को ख़त्म करने का प्रयास करें तो शायद हम भारत में एक नए समाजवाद की स्थापना कर पाएं।

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