हिन्दी ऑनलाइन जानकारी के मंच पर आज हम पढ़ेंगे 100 + Famous Acharya Chanakya Quotes in hindi for success, Acharya Chanakya status hindi, Acharya Chanakya Vichar in hindi, Acharya Chanakya quotes in hindi images, आचार्य चाणक्य के अनमोल विचार.
100 + Famous Chanakya Quotes in hindi for success आचार्य चाणक्य के अनमोल विचार -:

~ दुष्ट स्त्री बुद्धिमान व्यक्ति के शरीर को भी निर्बल बना देती है।
~ पहले निश्चय करिए, फिर कार्य आरम्भ करिए।
~ विद्या को चोर भी नहीं चुरा सकता।
~ सबसे बड़ा गुरु मंत्र अपने राज किसी को भी मत बताओ। ये तुम्हें खत्म कर देगा।
~ मनुष्य की वाणी ही विष और अमृत की खान है।
~ अपमानित हो के जीने से अच्छा मरना है। मृत्यु तो बस एक क्षण का दुःख देती है, लेकिन अपमान हर दिन जीवन में दुःख लाता है।
~ आदमी अपने जन्म से नहीं अपने कर्मों से महान होता है।
~ व्यसनी व्यक्ति कभी सफल नहीं हो सकता।
~ ईश्वर मूर्तियों में नहीं है। आपकी भावनाएँ ही आपका ईश्वर है। आत्मा आपका मंदिर है।
~ पुस्तकें एक मुर्ख आदमी के लिए वैसे ही हैं, जैसे एक अंधे के लिए आइना।
~ जब आप किसी काम की शुरुआत करें, तो असफलता से मत डरें और उस काम को ना छोड़ें। जो लोग ईमानदारी से काम करते हैं वो सबसे प्रसन्न होते हैं।
~ जो अपने कर्म को नहीं पहचानता, वह अंधा है।
~ दंड का भय ना होने से लोग अकार्य करने लगते हैं।
~ कोई काम शुरू करने से पहले, स्वयं से तीन प्रश्न कीजिये – मैं ये क्यों कर रहा हूँ, इसके परिणाम क्या हो सकते हैं और क्या मैं सफल होऊंगा. और जब गहराई से सोचने पर इन प्रश्नों के संतोषजनक उत्तर मिल जायें, तभी आगे बढिए।

~ प्रकृति का कोप सभी कोपों से बड़ा होता है।
~ जिसकी आत्मा संयमित होती है, वही आत्मविजयी होता है।
~ संकट में बुद्धि भी काम नहीं आती है।
~ जो जिस कार्य में कुशल हो उसे उसी कार्य में लगना चाहिए।
~ सेवक को तब परखें जब वह काम ना कर रहा हो, रिश्तेदार को किसी कठिनाई में, मित्र को संकट में, और पत्नी को घोर विपत्ति में।
~ किसी भी कार्य में पल भर का भी विलम्ब ना करें।
~ दुर्बल के साथ संधि ना करें।
~ किसी विशेष प्रयोजन के लिए ही शत्रु मित्र बनता है।
~ सर्प, नृप, शेर, डंक मारने वाले ततैया, छोटे बच्चे, दूसरों के कुत्तों, और एक मूर्ख: इन सातों को नीद से नहीं उठाना चाहिए।
~ यदि किसी का स्वभाव अच्छा है तो उसे किसी और गुण की क्या जरूरत है ? यदि आदमी के पास प्रसिद्धि है तो भला उसे और किसी श्रृंगार की क्या आवश्यकता है ?

~ कच्चा पात्र कच्चे पात्र से टकराकर टूट जाता है।
~ संधि और एकता होने पर भी सतर्क रहें।
~ शिकारपरस्त राजा धर्म और अर्थ दोनों को नष्ट कर लेता है।
~ भाग्य के विपरीत होने पर अच्छा कर्म भी दु:खदायी हो जाता है।
~ शत्रु की बुरी आदतों को सुनकर कानों को सुख मिलता है।
~ चोर और राजकर्मचारियों से धन की रक्षा करनी चाहिए।
~ प्रयत्न ना करने से कार्य में विघ्न पड़ता है।
~ विद्या ही निर्धन का धन है।
~ वो जिसका ज्ञान बस किताबों तक सीमित है और जिसका धन दूसरों के कब्ज़े मैं है, वो ज़रुरत पड़ने पर ना अपना ज्ञान प्रयोग कर सकता है ना धन।
~ शत्रु के गुण को भी ग्रहण करना चाहिए।
~ सिंह भूखा होने पर भी तिनका नहीं खाता।
~ वेश्याएं निर्धनों के साथ नहीं रहतीं, नागरिक कमजोर संगठन का समर्थन नहीं करते, और पक्षी उस पेड़ पर घोंसला नहीं बनाते जिस पे फल ना हों।

~ ऋण, शत्रु और रोग को समाप्त कर देना चाहिए।
~ शत्रु की दुर्बलता जानने तक उसे अपना मित्र बनाए रखें।
~ अन्न के सिवाय कोई दूसरा धन नहीं है।
~ भूख के समान कोई दूसरा शत्रु नहीं है।
~ अपने स्थान पर बने रहने से ही मनुष्य पूजा जाता है।
~ सभी प्रकार के भय से बदनामी का भय सबसे बड़ा होता है।
~ किसी लक्ष्य की सिद्धि में कभी भी किसी भी शत्रु का साथ न करें।
~ आलसी व्यक्ति का ना तो वर्तमान होता है और ना ही भविष्य।
~ प्रत्यक्ष और परोक्ष साधनों के अनुमान से कार्य की परीक्षा करें।
~ सत्य भी यदि अनुचित है तो उसे नहीं कहना चाहिए।
~ समय का ध्यान नहीं रखने वाला व्यक्ति अपने जीवन में निर्विघ्न नहीं रहता।
~ दोषहीन कार्यों का होना दुर्लभ होता है।
~ चंचल चित वाले के कार्य कभी समाप्त नहीं होते।
~ लापरवाही अथवा आलस्य से भेद खुल जाता है।
~ भाग्य पुरुषार्थी के पीछे चलता है।
~ अर्थ और धर्म, कर्म का आधार है।
~ शत्रु दण्ड नीति के ही योग्य है।
~ कठोर वाणी अग्नि दाह से भी अधिक तीव्र दुःख पहुँचाती है।
~ शक्तिशाली शत्रु को कमजोर समझकर ही उस पर आक्रमण करें।
~ अपने से अधिक शक्तिशाली और समान बल वाले से शत्रुता ना करें।
~ एक उत्कृष्ट बात जो शेर से सीखी जा सकती है वो ये है कि व्यक्ति जो कुछ भी करना चाहता है उसे पूरे दिल और ज़ोरदार प्रयास के साथ करे।
~ योग्य सहायकों के बिना निर्णय करना बड़ा कठिन होता है।
~ एक अकेला पहिया नहीं चला करता।
~ अविनीत स्वामी के होने से तो स्वामी का ना होना अच्छा है।
~ स्वभाव का अतिक्रमण अत्यंत कठिन है।
~ धूर्त व्यक्ति अपने स्वार्थ के लिए दूसरों की सेवा करते हैं।
~ विचार ना करके कार्य करने वाले व्यक्ति को लक्ष्मी त्याग देती है।
~ दुष्ट की मित्रता से शत्रु की मित्रता अच्छी होती है।

~ कठिन समय के लिए धन की रक्षा करनी चाहिए।
~ प्रकृति (सहज) रूप से प्रजा के संपन्न होने से नेता विहीन राज्य भी संचालित होता रहता है।
~ वृद्धजन की सेवा ही विनय का आधार है। वृद्ध सेवा अर्थात ज्ञानियों की सेवा से ही ज्ञान प्राप्त होता है।
~ ज्ञान से राजा अपनी आत्मा का परिष्कार करता है, सम्पादन करता है।
~ आत्मविजयी सभी प्रकार की संपत्ति एकत्र करने में समर्थ होता है।
~ जहाँ लक्ष्मी (धन) का निवास होता है, वहाँ सहज ही सुख-सम्पदा आ जुड़ती है।
~ इन्द्रियों पर विजय का आधार विनम्रता है।
~ निम्न अनुष्ठानों ( भूमि, धन-व्यापार, उधोग-धंधों ) से आय के साधन भी बढ़ते हैं।
~ शासक को स्वयं योग्य बनकर योग्य प्रशासकों की सहायता से शासन करना चाहिए।
~ सुख और दुःख में समान रूप से सहायक होना चाहिए।
~ स्वाभिमानी व्यक्ति प्रतिकूल विचारों को सम्मुख रखकर दोबारा उन पर विचार करें।
~ अविनीत व्यक्ति को स्नेही होने पर भी मंत्रणा में नहीं रखना चाहिए।
~ ज्ञानी और छल-कपट से रहित शुद्ध मन वाले व्यक्ति को ही मंत्री बनाएँ।
~ समस्त कार्य पूर्व मंत्रणा से करने चाहिए।
~ विचार अथवा मंत्रणा को गुप्त ना रखने पर कार्य नष्ट हो जाता है।
~ एक अनपढ़ व्यक्ति का जीवन उसी तरह से बेकार है जैसे की कुत्ते की पूँछ, जो ना उसके पीछे का भाग ढकती है ना ही उसे कीड़े-मकौडों के डंक से बचाती है।
~ आग में आग नहीं डालनी चाहिए। अर्थात क्रोधी व्यक्ति को अधिक क्रोध नहीं दिलाना चाहिए।
~ उपलब्धियां आलोचनाएं एक दूसरे की साथी है उपलब्धि बढ़ती है तो अवश्य ही आपकी आलोचनाएं भी उतनी ही होंगी।
~ भविष्य के अन्धकार में छिपे कार्य के लिए श्रेष्ठ मंत्रणा दीपक के समान प्रकाश देने वाली है।
~ मंत्रणा के समय कर्तव्य पालन में कभी ईर्ष्या नहीं करनी चाहिए।
~ मंत्रणा रूप आँखों से शत्रु के छिद्रों अर्थात उसकी कमजोरियों को देखा-परखा जाता है।
~ राजा, गुप्तचर और मंत्री तीनों का एक मत होना किसी भी मंत्रणा की सफलता है।
~ कार्य – अकार्य के तत्व दर्शी ही मंत्री होने चाहिए।

~ छः कानों में पड़ने से ( तीसरे व्यक्ति को पता पड़ने से ) मंत्रणा का भेद खुल जाता है।
~ राजनीति का संबंध केवल अपने राज्य को समृद्धि प्रदान करने वाले मामलों से होता है।
~ जो लोगो पर कठोर से कठोर सजा को लागू करता है। वो लोगो की नजर में घिनौना बनता जाता है, जबकि नरम सजा लागू करता है। वह तुच्छ बनता है। लेकिन जो योग्य सजा को लागू करता है वह सम्माननीय कहलाता है।
~ ईर्ष्या करने वाले दो समान व्यक्तियों में विरोध पैदा कर देना चाहिए।
~ जुए में लिप्त रहने वाले के कार्य पूरे नहीं होते हैं।
~ पूर्वाग्रह से ग्रसित दंड देना लोक निंदा का कारण बनता है।
~ धन का लालची श्रीविहीन हो जाता है।
~ दंड से सम्पदा का आयोजन होता है।
~ दण्डनीति से आत्मरक्षा की जा सकती है। आत्मरक्षा से सबकी रक्षा होती है।
~ कार्य का स्वरुप निर्धारित हो जाने के बाद वह कार्य लक्ष्य बन जाता है।
~ अस्थिर मन वाले की सोच स्थिर नहीं रहती।
~ कार्य के मध्य में अति विलम्ब और आलस्य उचित नहीं है।
~ कार्य-सिद्धि के लिए हस्त-कौशल का उपयोग करना चाहिए।
~ जिन्हें भाग्य पर विश्वास नहीं होता, उनके कार्य पूरे नहीं होते।
~ नीतिवान पुरुष कार्य प्रारम्भ करने से पूर्व ही देश-काल की परीक्षा कर लेते हैं।
~ मूर्ख लोग कार्यों के मध्य कठिनाई उत्पन्न होने पर दोष ही निकाला करते हैं।

~ चतुरंगिणी सेना ( हाथी, घोड़े, रथ और पैदल ) होने पर भी इन्द्रियों के वश में रहने वाला राजा नष्ट हो जाता है।
~ आलसी राजा अप्राप्त लाभ को प्राप्त नहीं करता। शक्तिशाली राजा लाभ को प्राप्त करने का प्रयत्न करता है।
~ दूध के लिए हथिनी पालने की जरुरत नहीं होती अर्थात आवश्कयता के अनुसार साधन जुटाने चाहिए।
~ वन की अग्नि चन्दन की लकड़ी को भी जला देती है, अर्थात दुष्ट व्यक्ति किसी का भी अहित कर सकते हैं।
~ फूलों की खुशबू हवा की दिशा में ही फैलती है, लेकिन एक व्यक्ति की अच्छाई चारों तरफ फैलती है।
~ इस धरती पर तीन रत्न है, अनाज, पानी और मीठे शब्द – मुर्ख लोग पत्थरो के टुकडो को ही रत्न समझते है।
~ इस बात को व्यक्त मत होने दीजिये कि आपने क्या करने के लिए सोचा है, बुद्धिमानी से इसे रहस्य बनाये रखिये और इस काम को करने के लिए दृढ रहिये।

~ जो अपने कर्तव्यों से बचते हैं, वे अपने आश्रितों व परिजनों का भरण-पोषण नहीं कर पाते।
~ सोने के साथ मिलकर चांदी भी सोने जैसी दिखाई पड़ती है अर्थात सत्संग का प्रभाव मनुष्य पर अवश्य पड़ता है।
~ सांप के फन, मक्खी के मुख और बिच्छु के डंक में ज़हर होता है; पर दुष्ट व्यक्ति तो इससे भरा होता है।
~ दौलत, दोस्त ,पत्नी और राज्य दोबारा हासिल किये जा सकते हैं, लेकिन ये शरीर दोबारा हासिल नहीं किया जा सकता।
~ राज्यतंत्र को ही नीतिशास्त्र कहते हैं। राजतंत्र से संबंधित घरेलू और बाह्य, दोनों कर्तव्यों को राजतंत्र का अंग कहा जाता है।
~ समय को समझने वाला कार्य सिद्ध करता है। समय का ज्ञान ना रखने वाले राजा का कर्म समय के द्वारा ही नष्ट हो जाता है।
~ कार्य की सिद्धि के लिए उदारता नहीं बरतनी चाहिए। दूध पीने के लिए गाय का बछड़ा अपनी माँ के थनों पर प्रहार करता है।
~ जैसे एक सूखा पेड़ आग लगने पे पुरे जंगल को जला देता है। उसी प्रकार एक दुष्ट पुत्र पुरे परिवार को खत्म कर देता है।
~ पृथ्वी सत्य पे टिकी हुई है। ये सत्य की ही ताक़त है, जिससे सूर्य चमकता है और हवा बहती है। वास्तव में सभी चीज़ें सत्य पे टिकी हुई हैं।
~ गरीब धन की इच्छा करता है, पशु बोलने योग्य होने की, आदमी स्वर्ग की इच्छा करते हैं और धार्मिक लोग मोक्ष की।
~ एक आदर्श पत्नी वो है जो अपने पति की सुबह माँ की तरह सेवा करे और दिन में एक बहन की तरह प्यार करे और रात में एक वेश्या की तरह खुश करे।
~ सुख का आधार धर्म है। धर्म का आधार अर्थ अर्थात धन है। अर्थ का आधार राज्य है। राज्य का आधार अपनी इन्द्रियों पर विजय पाना है।

~ आग सिर में स्थापित करने पर भी जलाती है। अर्थात दुष्ट व्यक्ति का कितना भी सम्मान कर लें, वह सदा दुःख ही देता है।
~ ढेकुली नीचे सिर झुकाकर ही कुँए से जल निकालती है अर्थात कपटी या पापी व्यक्ति सदैव मधुर वचन बोलकर अपना काम निकालते हैं।
~ ये मत सोचो की प्यार और लगाव एक ही चीज है। दोनों एक दूसरे के दुश्मन हैं। ये लगाव ही है जो प्यार को खत्म कर देता है।
~ हर मित्रता के पीछे कोई ना कोई स्वार्थ होता है. ऐसी कोई मित्रता नहीं जिसमे स्वार्थ ना हो। यह कड़वा सच है।
~ वो व्यक्ति जो दूसरों के गुप्त दोषों के बारे में बातें करते हैं, वे अपने आप को बांबी में आवारा घूमने वाले साँपों की तरह बर्बाद कर लेते हैं।
~ हमें भूत के बारे में पछतावा नहीं करना चाहिए, ना ही भविष्य के बारे में चिंतित होना चाहिए। विवेकवान व्यक्ति हमेशा वर्तमान में जीते हैं।
~ एक संतुलित मन के बराबर कोई तपस्या नहीं है। संतोष के बराबर कोई खुशी नहीं है। लोभ के जैसी कोई बिमारी नहीं है। दया के जैसा कोई सदाचार नहीं है।
~ जो गुजर गया उसकी चिंता नहीं करनी चाहिए, ना ही भविष्य के बारे में चिंतित होना चाहिए। समझदार लोग केवल वर्तमान में ही जीते हैं।

~ एक समझदार आदमी को सारस की तरह होश से काम लेना चाहिए। और स्थान, समय और अपनी योग्यता को समझते हुए अपने कार्य को सिद्ध करना चाहिए।
~ जिस आदमी से हमें काम लेना है, उससे हमें वही बात करनी चाहिए जो उसे अच्छी लगे। जैसे एक शिकारी हिरन का शिकार करने से पहले मधुर आवाज़ में गाता है।
~ जैसे एक बछड़ा हजारों गायों के झुंड में अपनी माँ के पीछे चलता है। उसी प्रकार आदमी के अच्छे और बुरे कर्म उसके पीछे चलते हैं।
~ वो जो अपने परिवार से अति लगाव रखता है भय और दुख में जीता है। सभी दुखों का मुख्य कारण लगाव ही है, इसलिए खुश रहने के लिए लगाव का त्याग आवशयक है।
~ एक राजा की ताकत उसकी शक्तिशाली भुजाओं में होती है। ब्राह्मण की ताकत उसके आध्यात्मिक ज्ञान में और एक औरत की ताक़त उसकी खूबसूरती, यौवन और मधुर वाणी में होती है।
~ पहले पांच सालों में अपने बच्चे को बड़े प्यार से रखिये। अगले पांच साल उन्हें डांट-डपट के रखिये। जब वह सोलह साल का हो जाये तो उसके साथ एक मित्र की तरह व्यवहार करिए। आपके वयस्क बच्चे ही आपके सबसे अच्छे मित्र हैं।
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