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10 + Famous Sant Ravidas Ke Dohe With Meaning

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संत रैदास के दोहे, Sant Ravidas Ke Dohe -:

मन चंगा तो कठौती में गंगा।।

अर्थ – यदि आपका मन पवित्र है तो साक्षात् ईश्वर आपके हृदय में निवास करते हैं।

कह रैदास तेरी भगति दूरि है, भाग बड़े सो पावै।
तजि अभिमान मेटि आपा पर, पिपिलक हवै चुनि खावै।।

अर्थ – ईश्वर की भक्ति व्यक्ति को अपने भाग्य से प्राप्त होती है। यदि मनुष्य में थोड़ा सा भी घमण्ड नहीं है तो वह जरूर ही अपने जीवन में सफल होता है। ठीक इसी प्रकार जिस प्रकार एक विशालकाय हाथी शक्कर के दानों को बीन नहीं सकता है और एक छोटी सी दिखने वाली चींटी शक्कर के दानों को आसानी से बीन सकती है। इसी प्रकार मनुष्य को भी अपने जीवन में बड़प्पन का भाव त्यागकर ईश्वर की भक्ति में लीन रहना चाहिए।

रैदास कहै जाकै हदै, रहे रैन दिन राम।
सो भगता भगवंत सम, क्रोध न व्यापै काम।।

अर्थ – जिसके हृदय में रात – दिन राम समाये रहते हैं। ऐसा भक्त राम के समान है। उस पर न तो क्रोध का असर होता है और न ही काम भावना उस पर हावी हो सकती है।

मन ही पूजा मन ही धूप।
मन ही सेऊं सहज स्वरूप।।

अर्थ – जिसका मन निर्मल होता है भगवन उसी में वास करते हैं। जिस व्यक्ति के मन में कोई बैर भाव नहीं है, किसी प्रकार का लालच नहीं है, किसी से कोई द्वेष नहीं है तो उसका मन भगवान का मंदिर, दीपक और धूप है। ऐसे पवित्र विचारों वाले मन में प्रभु सदैव निवास करते हैं।

हरि-सा हीरा छांड कै, करै आन की आस।
ते नर जमपुर जाहिंगे, सत भाषै रविदास।।

अर्थ – हरी के समान बहुमूल्य हीरे को छोड़ कर अन्य की आशा करने वाले अवश्य ही नरक जायेगें। यानि प्रभु भक्ति को छोड़ कर इधर-उधर भटकना व्यर्थ है।

रविदास जन्म के कारनै, होत न कोउ नीच।
नर कूं नीच करि डारि है, ओछे करम की कीच।।

अर्थ – किसी जाति में जन्म के कारण व्यक्ति नीचा या छोटा नहीं होता है। किसी व्यक्ति को भिन्न उसके कर्म बनाते हैं। इसलिए हमें सदैव अपने कर्मों पर ध्यान देना चाहिए। हमारे कर्म सदैव ऊंचें होने चाहिए।

जा देखे घिन उपजै, नरक कुंड में बास।
प्रेम भगति सों ऊधरे, प्रगटत जन रैदास।।

अर्थ – जिस को देखने से घृणा होती थी। जिसका नरक कुंड में वास था। ऐसे रैदास का प्रेम भक्ति ने कल्याण कर दिया है। और वह एक मनुष्य के रूप में प्रकट हो गए हैं।

जाति-जाति में जाति हैं, जो केतन के पात।
रैदास मनुष ना जुड़ सके, जब तक जाति न जात।।

अर्थ – जिस तरह केले के पेड़ के तने को छीला जाये तो पत्ते के नीचे पत्ता, फिर पत्ते के नीचे पत्ता और अंत में पूरा पेड़ खत्म हो जाता है। लेकिन कुछ नही मिलता। उसी प्रकार इंसान भी जातियों में बाँट दिया गया है। इन जातियों के विभाजन से इन्सान तो अलग – अलग बंट जाता है। और अंत में इन्सान भी खत्म हो जाते हैं। लेकिन यह जाति खत्म नहीं होती है। इसलिए जब तक ये जाति खत्म नहीं होगी तब तक इन्सान एक दुसरे से जुड़ नहीं सकता है।

ब्राह्मण मत पूजिए जो होवे गुणहीन।
पूजिए चरण चंडाल के जो होने गुण प्रवीन।।

अर्थ – किसी की सिर्फ इसलिए पूजा नहीं करनी चाहिए क्योंकि वह किसी पूजनीय पद पर है। यदि कोई व्यक्ति ऊँचे पद पर है पर उसमें उस पद के योग्य गुण नहीं है तो उसकी पूजा नहीं करनी चाहिए। इसके अतरिक्त कोई ऐसा व्यक्ति जो किसी ऊंचे पद पर तो नहीं है परन्तु उसमें पूज्यनीय गुण हैं तो उसका पूजन अवश्य करना चाहिए।

करम बंधन में बन्ध रहियो, फल की ना तज्जियो आस।
कर्म मानुष का धर्म है, सत् भाखै रविदास।।

अर्थ – मनुष्य को हमेशा अच्छे कर्म करते रहना चाहिए, उससे मिलने वाले फल की इच्छा नहीं करनी चाहिए। क्योंकि कर्म करना मनुष्य का धर्म है तो उसका फल मिलना हमारा सौभाग्य।

कृष्ण, करीम, राम, हरि, राघव, जब लग एक न पेखा।
वेद कतेब कुरान, पुरानन, सहज एक नहिं देखा।।

अर्थ – भगवान एक ही है। राम, कृष्ण, हरी, ईश्वर, करीम, राघव सब एक ही परमेश्वर के अलग – अलग नाम हैं। वेद, कुरान, पुराण आदि सभी ग्रंथो में एक ही ईश्वर का गुणगान किया गया है। और सभी ईश्वर की भक्ति के लिए सदाचार का पाठ सिखाते हैं।

रैदास कनक और कंगन माहि जिमि अंतर कछु नाहिं।
तैसे ही अंतर नहीं हिन्दुअन तुरकन माहि।।

वर्णाश्रम अभिमान तजि, पद रज बंदहिजासु की।
सन्देह-ग्रन्थि खण्डन-निपन, बानि विमुल रैदास की।।

हिंदू तुरक नहीं कछु भेदा सभी मह एक रक्त और मासा।
दोऊ एकऊ दूजा नाहीं, पेख्यो सोइ रैदासा।।

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