अर्थव्यवस्था की परिभाषा, अर्थव्यवस्था के प्रकार, अर्थव्यवस्था के क्षेत्र, Economy In Hindi, Types Of Economy In Hindi, Sectors Of Economy In Hindi

Economy And Types Of Economy In Hindi 2024 Important Gk

हिन्दी ऑनलाइन जानकारी के मंच पर आज हम पढ़ेंगे अर्थव्यवस्था के बारे में जानकारी, अर्थव्यवस्था किसे कहते है ?, अर्थव्यवस्था क्या है ?, अर्थव्यवस्था की परिभाषा, अर्थव्यवस्था के प्रकार, अर्थव्यवस्था के क्षेत्र, Important Gk About Economy In Hindi And Types Of Economy In Hindi, Sectors Of Economy In Hindi.

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Important Gk About Economy In Hindi And Types Of Economy In Hindi

अर्थशास्त्र और अर्थव्यवस्था ( Economics and Economy In Hindi ) -:

अर्थव्यवस्था ( Economy ) किसी विशेष क्षेत्र का अर्थशास्त्र होता है। अर्थात् किसी विशेष क्षेत्र में अर्थशास्त्र की नीति और सिद्धांत के अध्ययन को उस विशेष क्षेत्र की अर्थव्यवस्था ( Economy ) कहते हैं।

उदाहरण के तौर पर -: विकसित अर्थव्यवस्था, विकासशील अर्थव्यवस्था, भारतीय अर्थव्यवस्था, अमेरिकी अर्थव्यवस्था आदि।

अर्थशास्त्र ( Economics ) एक विषय है। जिसके अन्तर्गत बाजार के सिद्धांतों और नीतियों के आधार पर यह बताया जाता है. कि समाज, सरकार व व्यक्ति अपने संसाधनों का उपयोग किस प्रकार और किस स्तर तक करता है. तथा करना चाहिए।

अर्थशास्त्र के नीतियों और सिद्धांतों को प्रमुख रूप से प्रस्तुत करने का प्रथम प्रयास स्कॉटलैंड के प्रसिद्ध अर्थशास्त्री एडम स्मिथ ने सन् 1776 में प्रकाशित अपनी पुस्तक “द वेल्थ ऑफ नेशंस” ( The Wealth Of Nations ) में किया था।

शास्त्रीय अर्थशास्त्र ( classical economics ) की शुरुआत इसी पुस्तक के द्वारा हुई।

अर्थशास्त्र की शाखाएं -:

1. व्यष्टि अर्थशास्त्र ( micro economics ) -:

यह अत्यंत सूक्ष्म स्तर पर अर्थशास्त्र के अध्ययन के अर्थ को प्रकट करता है। अर्थात् किसी एक व्यक्ति द्वारा आर्थिक निर्णय व्यष्टि अर्थशास्त्र के अन्तर्गत आते हैं। इस विषय के अन्तर्गत एक व्यक्ति के व्यवहार को क्रेता और विक्रेता के रूप में अध्ययन किया जाता है।

2. समष्टि अर्थशास्त्र ( macro economics ) -:

इस विषय के अन्तर्गत संपूर्ण अर्थव्यवस्था के स्तर पर लिए गए निर्णय और नीतियों का अध्ययन किया जाता है।

उदा. – मुद्रा स्फीति (Inflation), राष्ट्रीय आय, बेरोजगारी आदि।

अर्थव्यवस्था के क्षेत्र ( Sectors Of Economy In Hindi) -:

अर्थव्यवस्था की आर्थिक गतिविधियों को तीन भागों में बांटा गया है।

1. प्राथमिक क्षेत्र ( Primary Sector ) -:

अर्थव्यवस्था का वह क्षेत्र, जो प्रत्यक्ष रूप से पर्यावरण पर निर्भर होता है तथा जहां से प्राकृतिक संसाधनों को एक उत्पाद के रूप में प्राप्त किया जाता है। प्राथमिक क्षेत्र कहलाता है।

जैसे -: कृषि, पशुपालन, मछली पालन, खनिज उत्खनन तथा इनसे संबंधित गतिविधियां आदि।

2. द्वितीयक क्षेत्र ( Secondary Sector ) -:

अर्थव्यवस्था का वह क्षेत्र, जो प्राथमिक क्षेत्र के उत्पादों को एक नए उत्पाद के रूप में तैयार करता है। द्वितीयक क्षेत्र कहलाता है। इस क्षेत्र में विनिर्माण कार्य होने के कारण ही इसे औद्योगिक क्षेत्र भी कहते हैं।

जैसे -: वस्त्र उद्योग, इलेक्ट्रॉनिक्स, लोहा इस्पात उद्योग, वाहन उद्योग आदि।

3. तृतीयक क्षेत्र ( Tertiary Sector ) -:

अर्थव्यवस्था का वह क्षेत्र, जो सभी प्रकार की आर्थिक गतिविधियों में सेवाओं को प्रदान करता है। वह तृतीयक क्षेत्र कहलाता है। इसे सेवा क्षेत्र भी कहा जाता है।

जैसे -: बैंकिंग, शिक्षा, बीमा, चिकित्सा आदि।

अर्थव्यवस्था के प्रकार ( Types Of Economy In Hindi ) -:

आर्थिक प्रणाली में संसाधनों के वितरण के आधार पर अर्थव्यवस्था के तीन प्रकार होते हैं।

1. पूंजीवादी अर्थव्यवस्था ( Capitalistic Economy ) -: 

पूंजीवादी अर्थव्यवस्था के सिद्धांत का स्त्रोत एडम स्मिथ की सन् 1776 में प्रकाशित किताब ” द वेल्थ ऑफ नेशंस” को माना जाता है। संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, ऑस्ट्रेलिया आदि देशों में पूंजीवादी अर्थव्यवस्था का संचालन है। इस प्रकार की अर्थव्यवस्था की प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं।

a. सरकारी हस्तक्षेप का अभाव -:

पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में सरकार की भूमिका सिर्फ बाजार व्यवस्था के स्वतंत्र व कुशल संचालन तक ही सीमित होती है। कीमतों के निर्धारण में सरकारी हस्तक्षेप और सहायता की कोई भूमिका नहीं होती है।

b. निजी संपत्ति -:

पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में प्रत्येक व्यक्ति को संपत्ति का स्वामी होने का अधिकार होता है। व्यक्ति की मृत्यु के पश्चात उसकी संपत्ति उसके कानूनी उत्तराधिकारियों के नाम स्थानांतरित हो जाती है। इस प्रकार उत्तराधिकार का नियम निजी संपत्ति व्यवस्था को जीवित रखता है।

c. उद्यम की स्वतंत्रता -:

इस अर्थव्यवस्था में सभी व्यक्ति अपना व्यवसाय चुनने को स्वतंत्र होते हैं। सरकार नागरिकों की उत्पादक गतिविधियों में हस्तक्षेप नहीं करती है।

d. लाभ का उद्देश्य -:

इस प्रकार की अर्थव्यवस्था में अंतिम उद्देश्य स्वयं का हित अर्थात् लाभ कमाना होता है।

e. उपभोक्ता प्रभुत्व -:

पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में उपभोक्ता यानि ग्राहक को राजा के समान माना जाता है। उपभोक्ता भी अपनी इच्छा अनुसार संतुष्टिदायक वस्तुओं और सेवाओं पर अपनी आय को खर्च करने के लिए स्वतंत्र होता है।

f. प्रतियोगिता -:

इस प्रकार की अर्थव्यवस्था में किसी भी तरह के व्यवसाय में फर्मों यानि व्यापारिक प्रतिष्ठान या व्यक्ति को प्रवेश करने और बाहर निकलने पर किसी तरह का कोई प्रतिबंध नहीं होता है। प्रतियोगिता पूंजीवादी अर्थव्यवस्था की प्रमुख विशेषता है। इसी विशेषता के कारण उपभोक्ता का शोषण से बचाव होता है।

g. बाजारों और कीमतों का महत्व -:

निजी संपत्ति, चयन की स्वतंत्रता, लाभ का उद्देश्य और प्रतियोगिता जैसी विशेषताएं ही बाजार को कीमत प्रणाली के अनुसार काम करने के लिए उपयुक्त परिस्थितियों का निर्माण करती हैं। पूंजीवाद मूलतः बाजार आधारित व्यवस्था है। जिसमें प्रत्येक वस्तु की कीमत होती है। 

2. समाजवादी अर्थव्यवस्था ( State Economy ) -:

समाजवादी अर्थव्यवस्था के सिद्धांत को महान जर्मन दार्शनिक कार्ल मार्क्स ने दिया था। इस प्रकार की अर्थव्यवस्था में उत्पादन के संसाधनों पर सरकार का स्वामित्व होता है। निजी संपत्ति का अधिकार समाप्त हो जाता है। रूस और चीन इसके प्रमुख उदाहरण हैं। इसकी प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं।

a. आर्थिक नियोजन या केंद्रीय नियोजन -:

आर्थिक नियोजन समाजवादी अर्थव्यवस्था की एक प्रमुख धारणा या व्यवस्था है। सरकार ही वर्तमान और भविष्य की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए उत्पादन, उपभोग और निवेश संबंधी सभी आर्थिक निर्णय लेती है।

b. विषमताओं में कमी -:

समाजवादी अर्थव्यवस्था आय की विषमताओं को कम करने में सहायक होती है।

c. समाज कल्याण -:

सरकार का मुख्य उद्देश्य समाज कल्याण होता है। सरकार अपने सभी निर्णय निजी लाभ के लिए नहीं बल्कि समाज कल्याण के उद्देश्य से करती है।

d. वर्ग संघर्ष की समाप्ति -:

समाजवाद में किसी प्रकार की कोई भी प्रतियोगिता नहीं होती है। सभी व्यक्ति श्रमिक होते हैं. इसलिए कोई वर्ग संघर्ष नहीं होता है।

3. मिश्रित अर्थव्यवस्था ( Mixed Economy ) -:

ब्रिटिश अर्थशास्त्री जॉन मेनार्ड केंस ने सन् 1936 में प्रकाशित किताब ” द जनरल थ्योरी ऑफ एम्प्लॉयमेंट, इंटरेस्ट और मनी ” में मिश्रित अर्थव्यवस्था के सिद्धांत को पहली बार प्रतिपादित किया। पूंजीवादी और समाजवादी अर्थव्यवस्था की कमियों को दूर कर और इन दोनों अर्थव्यवस्थाओं की अच्छाइयों को साथ लेकर मिश्रित अर्थव्यवस्था ( Mixed Economy ) के सिद्धांत को जन्म दिया गया। ब्रिटिश अर्थशास्त्री जॉन मेनार्ड केंस ने सुझाव दिया था। कि पूंजीवादी अर्थव्यवस्था को समाजवादी अर्थव्यवस्था की ओर झुकना चाहिए। तो वहीं पोलिश अर्थशास्त्री प्रोफेसर ऑस्कर लांज ने कहा था। कि समाजवादी अर्थव्यवस्था को पूंजीवादी अर्थव्यवस्था की ओर थोड़ा झुकना चाहिए। मिश्रित अर्थव्यवस्था में निजी और सार्वजनिक क्षेत्रों का सह अस्तित्व रहता है। सरकार और बाजार दोनों साथ मिलकर काम करते हैं।

a. कीमत प्रणाली -:

कीमतें संसाधन के आवंटन में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। कुछ क्षेत्रों में निर्देशित कीमतें भी अपनाई जाती हैं। साथ ही सरकार भी लक्ष्य समूहों के लाभ के लिए कीमतों में आर्थिक सहायता भी प्रदान करती है। अतः एक मिश्रित अर्थव्यवस्था में जन सामान्य तथा समाज के कमजोर वर्गों के हित संवर्धन में सरकार द्वारा व्यक्तिगत स्वतंत्रता और सहायता दोनों ही उपलब्ध रहती हैं।

b. आर्थिक नियोजन -:

सरकार अल्पकालिक और दीर्घकालिक योजनाओं का निर्माण करती है। जिसकी वजह से वह अर्थव्यवस्था के विकास में निजी और सार्वजनिक क्षेत्रों के कार्यक्षेत्रों, निर्माण और दायित्व का निर्धारण करती है। 

c. निजी और सार्वजनिक क्षेत्रों का सह अस्तित्व -:

निजी क्षेत्र में निजी स्वामित्व की इकाईयां लाभ के उद्देश्य से कार्य करती हैं। सार्वजनिक क्षेत्र में सरकार के स्वामित्व वाली इकाईयां सामाजिक कल्याण के लिए कार्य करती हैं। मिश्रित अर्थव्यवस्था में दोनों प्रकार की इकाईयों को पूर्ण स्वतंत्रता होती है।

d. व्यक्तिगत स्वतंत्रता -:

व्यक्ति अपनी आय को अधिकतम करने के लिए आर्थिक क्रियाओं में संलग्न रहते हैं। वे अपना व्यवसाय और उपभोग चुनने के लिए स्वतंत्र होते हैं। परंतु उत्पादकों को श्रमिकों और उपभोक्ताओं के शोषण करने का कोई अधिकार नहीं होता है। जनकल्याण की दृष्टि से सरकार इन पर कुछ नियंत्रण रखती है।

विकास के आधार पर अर्थव्यवस्था के प्रकार -:

1. विकसित अर्थव्यवस्था ( Developed Economy ) -:

विकसित देशों में राष्ट्रीय आय, प्रति व्यक्ति आय तथा पूंजी निर्माण ( बचत एवं निवेश ) उच्च होते हैं। इन देशों में मानवीय संसाधन अधिक शिक्षित तथा कार्य कुशल होते हैं। इन देशों में जन सुविधाएं, चिकित्सा, शिक्षा सुविधाएं बेहतर होती हैं। विकसित देशों में औद्योगिक तथा सामाजिक आधारित संरचना और पूंजी एवं वित्त बाजार भी काफी विकसित होते हैं।

2. विकासशील अर्थव्यवस्था ( Developing Economy ) -:

विकासशील देशों में राष्ट्रीय आय और प्रति व्यक्ति आय कम होती है। कृषि और उद्योग पिछड़े हुए होते हैं। बचत, निवेश एवं पूंजी निर्माण का स्तर निम्न होता है। इन देशों में निम्न जीवन स्तर, उच्च शिशु मृत्यु दर, उच्च जन्म दर पायी जाती है। स्वास्थय, स्वच्छता प्रबंध तथा आधारिक संरचना का स्तर निम्न होता है। इन देशों में प्रायः प्राथमिक एवं कृषि उत्पाद निर्यात किए जाते हैं।

जनता की कार्यशैली के आधार पर अर्थव्यवस्था के प्रकार -:

1. कृषक अर्थव्यवस्था ( Agrarian Economy ) -: 

किसी देश की अर्थव्यवस्था के सकल घरेलू उत्पाद में प्राथमिक क्षेत्र का योगदान यदि 50 % या इससे अधिक होता है। तो वह देश कृषक अर्थव्यवस्था वाला देश कहलाता है। भारत के स्वतंत्र होने के समय यह एक कृषक अर्थव्यवस्था वाला देश था। लेकिन आज के समय भारत के सकल घरेलू उत्पाद में प्राथमिक क्षेत्र का योगदान घटकर लगभग 18 % ही रह गया है।

2. औद्योगिक अर्थव्यवस्था ( Industrial Economy ) -: 

अगर किसी देश की अर्थव्यवस्था के सकल घरेलू उत्पाद में द्वितीयक क्षेत्र का हिस्सा 50 % या इससे अधिक होता है। तो वह देश औद्योगिक अर्थव्यवस्था वाला देश कहलाता है। 

2. सेवा अर्थव्यवस्था ( Service Economy ) -:

अगर किसी देश की अर्थव्यवस्था के सकल घरेलू उत्पाद में तृतीयक क्षेत्र का योगदान 50 % या इससे अधिक होता है। तो वह सेवा अर्थव्यवस्था वाला देश कहलाता है। भारत में पिछले कुछ दशकों में सकल घरेलू उत्पाद में तृतीयक क्षेत्र का योगदान काफी ज्यादा हुआ है।

अर्थव्यवस्था की मुख्य समस्या ( Main problems of economy in hindi ) -:

हमारी आवश्यकताएं अनंत हैं परंतु संसाधन सीमित हैं। और संसाधनों का आवंटन ही अर्थव्यवस्था की एक प्रमुख समस्या है। जो कि निम्नलिखित है।

1. किन वस्तुओं और सेवाओं का तथा कितनी मात्रा में उत्पादन किया जाए -:

प्रत्येक समाज को चयन की समान समस्या का सामना करना पड़ता है. परंतु प्राथमिकताएं भिन्न भिन्न हो सकती हैं। अल्पविकसित अर्थव्यवस्था में खाद्यानों की फसलों के उत्पादन और साइकिलों के निर्माण के बीच चयन करना पड़ सकता है। विकसित अर्थव्यवस्था में उपग्रहों के निर्माण और कारों के निर्माण में चयन करना पड़ सकता है।

2. वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन कैसे किया जाए -:

एक बार जब यह निश्चित हो जाता है। कि किन वस्तुओं का उत्पादन होना है. तो यह समस्या उत्पन्न हो जाती है. कि उन वस्तुओं का उत्पादन कैसे किया जाए।

3. वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन किसके लिए किया जाए -:

दुर्लभता के कारण प्रत्येक व्यक्ति की आवश्यकताओं की पुष्टि करना संभव नहीं है. इसलिए यह निश्चित किया जाना चाहिए। कि किसकी आवश्यकताओं की पुष्टि करना है. उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं का उपयोग किसे करना है. और कौन इसका लाभ प्राप्त करेगा। जैसे कि – अर्थव्यवस्था को खाद्यान्न फसलों का अधिक उत्पादन करना है या कम्प्यूटर का।

A. पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में संसाधनों का आवंटन -: 

  • वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन उन सभी के लिए होता है। जो उनके लिए भुगतान कर सकें।
  • केवल उन वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन होता है। जो उपभोक्ता चाहते हैं।
  • न्यूनतम प्रति इकाई लागत पर वस्तुओं की अधिकतम मात्रा का उत्पादन होता है।

B. समाजवादी अर्थव्यवस्था में संसाधनों का आवंटन -:

समाजवादी अर्थव्यवस्था में सरकार का एक केंद्रीय नियोजन अधिकारी होता है। जो क्या उत्पादन करना है ?, कैसे उत्पादन करना है ? तथा किसके लिए उत्पादन करना है ?, का निर्णय लेता है।

C. मिश्रित अर्थव्यवस्था में संसाधनों का आवंटन -: 

मिश्रित अर्थव्यवस्था में सरकार नियोजन को बाजार अर्थव्यवस्था के साथ जोड़ती है। मिश्रित आर्थिक प्रणाली में निजी क्षेत्र द्वारा वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन का चयन लाभ के उद्देश्य के आधार पर निर्भर करता है।

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