हिन्दी ऑनलाइन जानकारी के मंच पर आज हम पढ़ेंगे महर्षि वाल्मीकि के विचार, Maharishi Valmiki Quotes In Hindi for Valmiki Jayanti, Maharishi Valmiki Jayanti Quotes in Hindi, Maharishi Valmiki Jayanti Images, Maharishi Valmiki Ke Anmol Vachan.
महर्षि वाल्मीकि के विचार, Maharishi Valmiki Quotes in Hindi -:
~ सेवा से शत्रु भी मित्र हो जाता है।
~ प्रण को तोड़ने से पुण्य नष्ट हो जाते हैं।
~ दुखी व्यक्ति प्रत्येक पाप कर सकता है।
~ माया के दो भेद हैं – अविद्या और विद्या।
~ सारे पुण्यों और सद्गुणों की जड़ सत्य है।
~ स्त्री या पुरुष के लिए क्षमा ही अलंकार है।
~ जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी महान है।
~ सहयोग और समन्वय की सदैव जीत होती है।
~ जीवन में सदैव सुख ही मिले यह बहुत दुर्लभ है।
~ बिना अच्छे चरित्र के आप महान नहीं बन सकते।
~ होनी के प्रति दुःख मनाना कायरता और अज्ञान है।
~ पुरुषार्थ किये बिना भाग्य का निर्माण नहीं हो सकता।
~ माता पिता की सेवा करना सदैव कल्याणकारी होता है।
~ सत्य ही सबका मूल है और सत्य से बढकर कुछ भी नही है।
~ दृढसंकल्प लेकर आप कोई भी काम आसान कर सकते हो।
~ किसी वचन को तोड़ने से आपके सारे अच्छे कर्म नष्ट हो जाते हैं।
~ प्रियजनों से भी मोहवश अत्यधिक प्रेम करने से यश चला जाता है।
~ माता पिता की सेवा और उनकी आज्ञा पालन जैसा धर्म कोई नही है।
~ संघर्ष से आप महान बन सकते है। आगे बढ़ना है तो संघर्ष जरूरी है।
~ किसी व्यक्ति से ज्यादा मोह रखना भी दुःख का कारण बन सकता है।
~ जैसा राजा का आचरण होता है ठीक वैसा ही प्रजा भी आचरण करती है।
~ सहयोग करने वाले और सबसे मिलकर रहने वाले की सदैव जीत होती है।
~ अगर आप किसी के सेवा के लिए अपना बल लगाते है तो वह बल अमर है।
~ जो लोग गलत रास्ते पर चलते है, उन्हें कभी भी सच्चा ज्ञान नही प्राप्त होता है।
~ किसी के लिए घृणा का भाव अपने मन में रखने से आप खुद मैले हो जाते हो।
~ दुख और विपदा जीवन के दो ऐसे मेहमान हैं, जो बिना निमंत्रण के ही आते हैं।
~ असत्य के समान पातक पुंज नहीं है। समस्त सत्य कर्मों का आधार सत्य ही है।
~ राजा को आदर्श व सच्चरित होना चाहिए। क्योंकि वह प्रजापालक कहलाता है।
~ संसार में ऐसे लोग थोड़े ही होते हैं, जो कठोर किंतु हित की बात कहने वाले होते हैं।
~ क्रोध ही व्यक्ति के समस्त सद्गुणों का नाश करता है। इसलिए क्रोध का त्याग करो।
~ अगर आपके अंदर उत्साह होगा तो आप असम्भव काम को भी संभव बना सकते हैं।
~ नीच की नम्रता अत्यंत दुखदायी है, अंकुश, धनुष, सांप और बिल्ली झुककर वार करते हैं।
~ अच्छे स्वाभाव वाले लोग अपने घर के सोने गहनों और मित्र में कोई फर्क नहीं समझते हैं।
~ आप साहसी या कायर, गुणवान है या दोष से भरे हुए। यह आपका चरित्र से दिख जाता है।
~ उत्साह, सामर्थ्य और मन में हिम्मत न हारना ये कार्य की सिद्धि कराने वाले गुण कहे गये है।
~ संतोष नन्दनवन है तथा शांति कामधेनु है। इस पर विचार करो और शांति के लिए श्रम करो।
~ जो व्यक्ति वीर और बलवान होते है, वे जलहीन बादलों के समान खाली गर्जना नहीं करते है।
~ पराये धन का अपहरण, पर स्त्री के साथ संसर्ग, सुहृदों पर अतिशंका – ये तीनों दोष विनाशकारी है।
~ संत दूसरों को दु:ख से बचाने के लिए कष्ट सहते रहते हैं, दुष्ट लोग दूसरों को दु:ख में डालने के लिए।
~ मनुष्य का आचरण ही बतलाता है कि वह कुलीन है या अकुलीन, वीर है या कायर अथवा पवित्र है या अपवित्र।
~ मित्र बनाना सरल है, मैत्री पालन दुष्कर है। चितों की अस्थिरता के कारण अल्प मतभेद होने पर भी मित्रता टूट जाती है।
~ पिता की सेवा करना जैसा कल्याणकारी है, वैसा उत्तम साधन न सत्य है, न दान-सम्मान है और न प्रचुर दक्षिणा वाले ही है।
~ जो व्यक्ति अपने पक्ष को छोड़कर दुसरो के पक्ष में मिल जाता है फिर उस पक्ष के नष्ट होने पर वह खुद ही नष्ट हो जाता है।
~ तुम्हें गर्व, अहंकार और कुटिलता का परित्याग करना चाहिए। तुम्हें दूसरों की आलोचना की कभी चिंता नहीं करनी चाहिए।
~ नारी के लिए वास्तव में उसका पति ही सम्पूर्ण आभूषण है। उससे पृथक रहकर वह कितनी भी सुंदर क्यों न हो सुशोभित नहीं होती।
~ अतिसंघर्ष से चंदन में भी आग प्रकट हो जाती है, उसी प्रकार बहुत अवज्ञा किए जाने पर ज्ञानी के भी हृदय में भी क्रोध उपज जाता है।
~ संत पुरूष हमेशा लोगों को दुःख से बचाने के लिए कष्ट सहते हैं। जबकि दुष्ट प्रवित्ति के लोग दूसरों को हमेशा दुःख में डालने के लिए ही जीते हैं।
~ किसी के साथ अत्यंत प्रेम न करो और प्रेम का सवर्था अभाव भी न होने दो, क्योंकि ये दोनों ही महान दोष है, अत: मध्यम स्थिति पर ही दृष्टि रखो।
~ मन इच्छित वस्तु को प्राप्त करने के बाद भी ठीक वैसे ही कभी संतुष्ट नहीं होता, जैसे छिद्रयुक्त पात्र को कितना भी जल डाल कर भरा नहीं जा सकता।
~ परमात्मा ने जो कुछ तुमको दिया है, तुमको चाहिए कि उसके लिए परमात्मा के प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट करो। इस विषय में तुम्हे कृतघ्न नहीं होना चाहिए।
~ जिस प्रकार चुहिया प्रत्येक दिन थोडा-थोडा खोद कर धरती में अपना बिल बनाती है, उसी प्रकार काल प्राणियों के जीवन को क्षण-प्रतिक्षण समाप्त करता जाता है।
~ महत्वाकांक्षा से युक्त मन सदैव रिक्त रहता है। इसीलिए वह ठीक उसी प्रकार कहीं भी शांति प्राप्त नहीं करता, जैसे अपने समूह से बिछुड़ कर हिरण अशांत होता है।
~ किसी भी मनुष्य की इच्छाशक्ति अगर उसके साथ हो तो वह कोई भी काम बड़े आसानी से कर सकता है। इच्छाशक्ति और दृढ़संकल्प मनुष्य को रंक से राजा बना देती है।
~ विवाह योग्य स्त्रियां प्रत्येक देश में मिल सकती हैं। मित्र-परिजन भी प्रत्येक देश में प्राप्त हो सकते हैं। किन्तु मुझे कोई ऐसा देश दिखाई नहीं पड़ता, जहां सहोदर भाई मिल सकते हों।
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