अंतरराष्ट्रीय योग दिवस 2021, International yoga day 2021, योग दर्शन के बारे में, Yog darshan kya hota hai, Yog darshan ke pratipadak kaun hai ?

Yog Darshan – International Yoga Day 2021

हिन्दी ऑनलाइन जानकारी के मंच पर अंतरराष्ट्रीय योग दिवस 2021 / International yoga day 2021 के अवसर पर हम संक्षिप्त रुप में जानेंगे योग दर्शन के बारे में। Yog darshan kya hota hai, Yog darshan ke pratipadak kaun hai ?

Yog Darshan – International Yoga Day 2021 -:

योग –:

भारत में योग एक आध्यात्मिक प्रक्रिया है। जिसमें शरीर, मन और आत्मा को एक साथ लाने का काम होता है। इसका अभ्यास बिना किसी भेदभाव के किसी भी धर्म, जाति या लिंग के व्यक्ति द्वारा किया जा सकता है।

योग दर्शन –:

योग दर्शन के प्रणेता महर्षि पतंजलि हैं। योग दर्शन छः आस्तिक दर्शनों ( षड्दर्शन ) में से एक है। इस दर्शन का पहला ग्रंथ योग सूत्र है। योग दर्शन को सेश्वर सांख्य या ईश्वरवादी सांख्य भी कहते हैं। क्योंकि जीवन और जगत के संबंध में यह सांख्य की लगभग सभी मान्यताओं को स्वीकारता है। साथ ही, यह ईश्वर के अस्तित्व को भी स्वीकारता है। योग दर्शन में ईश्वर को एक विशिष्ट पुरुष बताया गया है जो क्लेश, कर्म, परिणाम, आदर्श, संस्कार आदि से अप्रभावित रहता है। उसका कार्य मुक्ति प्रदान करना नहीं, बल्कि केवल साधक के मार्ग से विघ्न बाधाओं को दूर करना है। भगवत गीता को भी योग शास्त्र अर्थात् योग की नियमावली कहा जाता है।

योग शास्त्र में योग का अर्थ है – समाधि। महर्षि पतंजलि के अनुसार, योग चित्तवृत्तियों का निरोध है। योग का उद्देश्य आत्मा के यथार्थ स्वरूप की प्राप्ति है। योग दर्शन के अनुसार, चित्तवृत्ति का आशय है कि चित्त द्वारा विषयों का आकार ग्रहण करना। चित्त की पाँच वृत्तियाँ हैं – प्रमाण ( सत्य ज्ञान ), विपर्यय ( मिथ्या ज्ञान ), विकल्प ( कल्पना ), निद्रा तथा स्मृति। प्रमाण के तीन भेद हैं – प्रत्यक्ष, अनुमान तथा शब्द। किसी वस्तु के संबंध में मिथ्या ज्ञान को विपर्यय कहते हैं। विकल्प केवल कल्पना है। निद्रा से तात्पर्य मन के विकार से है। स्मृति भूतकाल के अनुभवों की मानसिक प्रतीति है। ये चित्तवृत्तियां ही बंधन का कारण है।

योग दर्शन में आष्टांगिक मार्ग का पालन करने पर जोर दिया गया है।

  1. योग :- अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह।
  2. नियम :- शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय, ईश्वर का ध्यान करना।
  3. आसन :- पद्मासन, वीरासन, भद्रासन आदि। इससे व्यक्ति को स्थिरता और सुख की प्राप्ति होती है।
  4. प्राणायाम :- श्वास आदि की गति के नियंत्रण को प्राणायाम कहा गया है। इसके 3 प्रकार हैं – पूरक, कुंभक और रेचक।
  5. प्रत्याहार :- इंद्रियों को बाह्य विषयों से हटाकर मन को वश में रखना प्रत्याहार है।
  6. धारणा :- बाह्य या आंतरिक किसी भी विषय में चित्त को बांध देना या लगा देना धारणा है।
  7. ध्यान :- चित्त की एकाग्रता ही ध्यान है।
  8. समाधि :- यह आष्टांगिक मार्ग की अंतिम अवस्था है। इस अवस्था में पुरुष की चित्तवृत्तियों का पूर्ण निरोध हो जाता है। तथा वह प्रकृति के संपर्क से पृथक होकर अपने मूल स्वर में स्थिर हो जाता है।

अन्य लेख -:

Please do subscribe -; Youtube Channel

Leave a Reply