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Pandit Deendayal Upadhyaya Quotes in Hindi, पंडित दीनदयाल उपाध्याय के विचार –:

~ मानवीय ज्ञान सभी की अपनी संपत्ति है।

~ अंग्रेजी शब्द रिलिजन, धर्म के लिए सही शब्द नहीं है।

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~ बिना राष्ट्रीय पहचान के स्वतंत्रता की कल्पना व्यर्थ है।

~ एक अच्छे को शिक्षित करना वास्तव में समाज के हित में है।

~ शक्ति हमारे असंयत व्यवहार में नहीं बल्कि संयत कार्यवाही में निहित है।

~ अवसरवाद से राजनीति के प्रति लोगों का विश्वास खत्म होता जा रहा है।

~ नैतिकता के सिद्धांत किसी के द्वारा बनाये नहीं जाते, बल्कि खोजे जाते हैं।

~ शिक्षा एक निवेश है, जो आगे चलकर शिक्षित व्यक्ति समाज की सेवा करेगा।

~ भारत में नैतिकता के सिद्धांतों को धर्म कहा जाता है। – जीवन जीने की विधि।

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~ अपने राष्ट्र की पहचान को भुलाना भारत की मूलभूत समस्याओं का प्रमुख कारण है।

~ किसी सिद्धांत को ना मानने वाले अवसरवादी हमारे देश की राजनीति नियंत्रित करते हैं।

~ स्वतंत्रता तभी सार्थक होती है जब वो हमारी संस्कृति की अभिव्यक्ति का साधन बनती है।

~ भारतीय संस्कृति की यह मूल विशेषता है कि यह जीवन को विशाल और वृहद् रूप में देखती है।

~ अनेकता में एकता और विभिन्न रूपों में एकता की अभिव्यक्ति भारतीय संस्कृति की सोच रही है।

~ मानव प्रकृति में दोनों प्रवृत्तियां रही हैं। – एक तरफ क्रोध और लोभ तो दूसरी तरफ प्रेम और त्याग।

~ भारत जिन समस्याओं का सामना कर रहा है उसका मूल कारण इसकी राष्ट्रीय पहचान की उपेक्षा है।

~ रिलिजन शब्द का अभिप्राय पंथ या सम्प्रदाय से होता है इसका अर्थ धर्म तो कतई नहीं हो सकता है।

~ ये ज़रूरी है कि हम हमारी राष्ट्रीय पहचान के बारे में सोचें जिसके बिना स्वतंत्रता का कोई अर्थ नहीं है।

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~ यदि समाज का हर व्यक्ति शिक्षित होगा तभी वह समाज के प्रति दायित्वों को पूरा करने में समर्थ होगा।

~ जब हमारे स्वाभाव धर्म के सिद्धांतों के जरिये बदलते हैं तब हमें संस्कृति और सभ्यता की प्राप्ति होती है।

~ धर्म एक बहुत ही व्यापक और विस्तृत विचार है। जो समाज को बनाए रखने के सभी पहलुओं से संबंधित है।

~ भारत में जीवन में विविधता और बहुलता है लेकिन हमने हमेशा इसके पीछे की एकता को खोजने का प्रयास किया है।

~ जब राज्य सभी शक्तियों, दोनों राजनीतिक और आर्थिक का अधिग्रहण कर लेता है, तो इसका परिणाम धर्म का पतन होता है।

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~ धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की लालसा हर मनुष्य में जन्मजात होती है और समग्र रूप में इनकी संतुष्टि भारतीय संस्कृति का सार है।

~ धर्म के मूल सिद्धांत शाश्वत और सार्वभौमिक हैं। हालांकि उनका क्रियान्वन समय, स्थान और परिस्थितियों के अनुसार अलग -अलग हो सकता है।

~ पिछले एक हज़ार वर्षों में हमने जो भी आत्मसात किया। चाहे वो हम पर थोपा गया या हमने स्वेच्छा से अपनाया। उसे अब छोड़ा नहीं जा सकता।

~ हमारी राष्ट्रीयता का आधार भारत माता है सिर्फ भारत नहीं। इसमें से माता शब्द हटा लीजिये तो भारत एक जमीन का टुकड़ा मात्र बनकर रह जायेगा।

~ हमें सही व्यक्ति को वोट देना चाहिए न की उसके बटुए को, पार्टी को वोट दें किसी व्यक्ति को भी नहीं। किसी पार्टी को वोट न दें बल्कि उसके सिद्धांतों को वोट देना चाहिए।

~ यहाँ भारत में, हमने अपने समक्ष मानव के समग्र विकास के लिए शरीर, मन, बुद्धि और आत्मा की आवश्यकताओं की पूर्ति करने की चार स्तरीय जिम्मेदारियों का आदर्श रखा है।

~ हम लोगों ने अंग्रेजी वस्तुओं का विरोध करने में तब गर्व महसूस किया था जब वे हम पर शासन करते थे। पर हैरत की बात है कि अब जब अंग्रेज जा चुके हैं, पश्चिमीकरण प्रगति का पर्याय बन चुका है।

~ एक बीज, जड़ों, तानों, शाखाओं, पत्तियों, फूलों और फलों के रूप में अभिवयक्त होता है। इन सभी के अलग -अलग रूप, रंग और गुण होते हैं। फिर भी हम बीज के माध्यम से उनकी एकता के सम्बन्ध को पहचानते हैं।

~ एक देश लोगों का समूह है जो एक लक्ष्य, एक आदर्श, एक मिशन के साथ जीते हैं और धरती के एक टुकड़े को मातृभूमि के रूप में देखते हैं। यदि आदर्श या मातृभूमि – इन दोनों में से एक भी नहीं है तो देश का कोई अस्तित्व नहीं है।

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~ पश्चिमी विज्ञान और पश्चिमी जीवन दो अलग -अलग चीजें हैं। जहाँ पश्चिमी विज्ञान सार्वभौमिक है। और यदि हमें आगे बढ़ना है तो इसे हमारे द्वारा अवश्य अपनाया जाना चाहिए। वहीं पश्चिमी जीवन और मूल्यों के बारे में ये बात सत्य नहीं है।

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