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100 + Famous Rahim Ke Dohe In Hindi

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रहीम के दोहे, Famous Rahim ke Dohe in hindi -:

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रहिमन पानी राखिये, बिनु पानी सब सून।
पानी गए न ऊबरै, मोती, मानुष, चून।।

एकै साधै सब सधै सब साधे सब जाय।
रहिमन मूलहिं संचिबो फूलै फलै अघाय।।

रहिमन मनहि लगाईं कै, देखि लेहू किन कोय।
नर को बस करिबो कहा, नारायन बस होय।।

रहिमन रहिला की भले, जो परसै चित लाय।
परसत मन मैला करे, सो मैदा जरि जाय।।

टूटे सुजन मनाइए, जौ टूटे सौ बार।
रहिमन फिरि फिरि पोहिए, टूटे मुक्ताहार।।

प्रेम पंथ ऐसो कठिन, सब कोउ निबहत नाहिं।
रहिमन मैन-तुरंग चढ़ि, चलिबो पाठक माहिं।।

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रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय।
टूटे से फिर ना जुड़े, जुड़े गाँठ परि जाय॥

खीरा सिर ते काटिये, मलियत नमक लगाय।
रहिमन करुये मुखन को, चहियत इहै सजाय।।

बड़े बड़ाई ना करें, बड़ो न बोलें बोल।
रहिमन हीरा कब कहै, लाख टका है मोल।।

चाह गई चिंता मिटी, मनुआ बेपरवाह।
जिनको कछु नहि चाहिये, वे साहन के साह।।

जे गरीब पर हित करैं, हे रहीम बड़ लोग।
कहा सुदामा बापुरो, कृष्ण मिताई जोग।।

स्वासह तुरिय जो उच्चरै, तिय है निश्चल चित्त।
पूत परा घर जानिये, रहिमन तीन पवित्त।।

जो रहीम गति दीप की, कुल कपूत गति सोय।
बारे उजियारो लगे, बढ़े अँधेरो होय।।

समय परे ओछे बचन, सब के सहै रहीम।
सभा दुसासन पट गहे, गदा लिए रहे भीम।।

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रहिमन देख बड़ेन को, लघु न दीजिये डारि।
जहाँ काम आवै सुई, कहा करै तलवारि।।

पावस देखि रहीम मन, कोइल साधे मौन।
अब दादुर वक्ता भए, हमको पूछे कौन।।

बड़े काम ओछो करै, तो न बड़ाई होय।
ज्यों रहीम हनुमंत को, गिरिधर कहे न कोय।।

रहिमन प्रीति सराहिये, मिले होत रंग दून।
ज्यों जरदी हरदी तजै, तजै सफेदी चून।।

माली आवत देख के, कलियन करे पुकारि।
फूले फूले चुनि लिये, कालि हमारी बारि।।

रहिमन वे नर मर गये, जे कछु माँगन जाहि।
उनते पहिले वे मुये, जिन मुख निकसत नाहि।।

आवत काज रहीम कहि, गाढ़े बंधु सनेह।
जीरन होत न पेड़ ज्यौं, थामे बरै बरेह।।

अमर बेलि बिनु मूल की, प्रतिपालत है ताहि।
रहिमन ऐसे प्रभुहिं तजि, खोजत फिरिए काहि।।

रहिमन विपदा ही भली, जो थोरे दिन होय।
हित अनहित या जगत में, जानि परत सब कोय।।

बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर।
पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर।।

Rahim Quotes In Hindi -:

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ज्यों चौरासी लख में मानुष देह।
त्यों ही दुर्लभ जग में सहज सनेह।।

अधम वचन काको फल्यो, बैठि ताड़ की छांह।
रहिमन काम न आय है, ये नीरस जग मांह।।

रहिमन निज मन की व्यथा, मन में राखो गोय।
सुनि इठलैहैं लोग सब, बाटि न लैहै कोय।।

रहिमन चुप हो बैठिये, देखि दिनन के फेर।
जब नीके दिन आइहैं, बनत न लगिहैं देर।।

मन मोती अरु दूध रस, इनकी सहज सुभाय।
फट जाये तो ना मिले, कोटिन करो उपाय।।

रहिमह ओछे नरन सो, बैर भली ना प्रीत।
काटे चाटे स्वान के, दोउ भाँति विपरीत।।

वे रहीम नर धन्य हैं, पर उपकारी अंग।
बाँटनवारे को लगै, ज्यौं मेंहदी को रंग।।

जो बड़ेन को लघु कहें, नहीं रहीम घटी जाहिं।
गिरधर मुरलीधर कहें, कछु दुःख मानत नाहिं।।

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रूठे सुजन मनाइए, जो रूठे सौ बार।
रहिमन फिरि फिरि पोइए, टूटे मुक्ता हार।।

जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करी सकत कुसंग।
चन्दन विष व्यापे नहीं, लिपटे रहत भुजंग।।

जे सुलगे ते बुझि गये बुझे तो सुलगे नाहि।
रहिमन दाहे प्रेम के बुझि बुझि के सुलगाहि।।

देनहार कोउ और है, भेजत सो दिन रैन।
लोग भरम हम पै धरैं, याते नीचे नैन।।

रहिमन गली है सांकरी, दूजो नहिं ठहराहिं।
आपु अहै, तो हरि नहीं, हरि, तो आपुन नाहिं।।

अब रहीम मुसकिल परी, गाढ़े दोऊ काम।
सांचे से तो जग नहीं, झूठे मिलैं न राम।।

अंजन दियो तो किरकिरी, सुरमा दियो न जाय।
जिन आँखिन सों हरि लख्यो, रहिमन बलि बलि जाय।।

कागद को सो पूतरा, सहजहिं में घुल जाय।
रहिमन यह अचरज लखो, सोऊ खैंचत जाय।।

उरग तुरग नारी नृपति, नीच जाति हथियार।
रहिमन इन्हें संभारिए, पलटत लगै न बार।।

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कहि रहीम संपति सगे, बनत बहुत बहु रीत।
बिपति कसौटी जे कसे, तेई सांचे मीत।।

कहु रहीम कैसे निभै, बेर केर को संग।
वे डोलत रस आपने, उनके फाटत अंग।।

समय पाय फल होता हैं, समय पाय झरी जात।
सदा रहे नहीं एक सी, का रहीम पछितात।।

गुन ते लेत रहीम जन, सलिल कूप ते काढि।
कूपहु ते कहूँ होत है, मन काहू को बाढी।।

लोहे की न लोहार की, रहिमन कही विचार।
जा हनि मारे सीस पै, ताही की तलवार।।

तासों ही कछु पाइए, कीजे जाकी आस।
रीते सरवर पर गए, कैसे बुझे पियास।।

कहु रहीम केतिक रही, केतिक गई बिहाय।
माया ममता मोह परि, अन्त चले पछिताय।।

Famous Dohe Of Rahim In Hindi -:

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बिगरी बात बने नहीं, लाख करो किन कोय।
रहिमन बिगरै दूध को, मथे न माखन होय।।

वरू रहीम कानन भल्यो वास करिय फल भोग।
बंधू मध्य धनहीन ह्वै, बसिबो उचित न योग।।

रहिमन नीर पखान, बूड़े पै सीझै नहीं।
तैसे मूरख ज्ञान, बूझै पै सूझै नहीं।।

ओछे को सतसंग रहिमन तजहु अंगार ज्यों।
तातो जारै अंग सीरै पै कारौ लगै।।

धनि रहीम गति मीन की जल बिछुरत जिय जाय।
जियत कंज तजि अनत वसि कहा भौरे को भाय।।

नाद रीझि तन देत मृग, नर धन देत समेत।
ते रहिमन पसु ते अधिक, रीझेहुं कछु न देत।।

मान सहित विष खाय के, संभु भए जगदीस।
बिना मान अमृत पिए, राहु कटायो सीस।।

रहिमन विपदा हू भली, जो थोरे दिन होय।
हित अनहित मा जगत में, जानि परत सब कोय।।

असमय परे रहीम कहि, माँगि जात तजि लाज।
ज्‍यों लछमन माँगन गये, पारासर के नाज।।

तरुवर फल नहिं खात है, सरवर पियहि न पान।
कहि रहीम पर काज हित, संपति सँचहि सुजान।।

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रहिमन पैड़ा प्रेम को, निपट सिलसिली गैल।
बिलछत पांव पिपीलिको, लोग लदावत बैल।।

अरज गरज मानैं नहीं, रहिमन ए जन चारि।
रिनिया, राजा, माँगता, काम आतुरी नार।।

जैसी परे सो सहि रहे, कहि रहीम यह देह।
धरती ही पर परत है, सीत घाम औ मेह।।

को रहीम पर द्वार पै, जात न जिय सकुचात।
संपति के सब जात हैं, बिपति सबै लै जात।।

जो रहीम मन हाथ है, तो मन कहुं किन जाहि।
ज्यों जल में छाया परे, काया भीजत नाहिं।।

दीन सबन को लखत है, दीनहिं लखै न कोय।
जो रहीम दीनहिं लखत, दीनबन्धु सम होय।।

धन दारा अरु सुतन, सो लग्यो है नित चित।
नहि रहीम कोऊ लख्यो, गाढे दिन को मित।।

मांगे मुकरि न को गयो, केहि न त्यागियो साथ।
मांगत आगे सुख लह्यो, ते रहीम रघुनाथ।।

रहिमन तब लगि ठहरिये, दान मान सम्मान।
घटता मान देखिये जबहि, तुरतहि करिए पयान।।

छिमा बड़न को चाहिये, छोटन को उतपात।
कह रहीम हरि का घट्यौ जो भृगु मारी लात।।

तरुवर फल नहिं खात है, सरवर पियहि न पान।
कहि रहीम पर काज हित, संपति सँचहि सुजान।।

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खैर, खून, खाँसी, खुसी, बैर, प्रीति, मदपान।
रहिमन दाबे न दबै, जानत सकल जहान।।

जो रहीम ओछो बढ़ै, तौ अति ही इतराय।
प्यादे सों फरजी भयो, टेढ़ो टेढ़ो जाय।।

बिगरी बात बने नहीं, लाख करो किन कोय।
रहिमन बिगरे दूध को, मथे न माखन होय।।

आब गई आदर गया, नैनन गया सनेहि।
ये तीनों तब ही गये, जबहि कहा कछु देहि।।

जैसी परे सो सहि रहे, कहि रहीम यह देह।
धरती ही पर परत है, सीत घाम औ मेह।।

दोनों रहिमन एक से, जों लों बोलत नाहिं।
जान परत हैं काक पिक, रितु बसंत के माहिं।।

रहिमन निज मन की बिथा, मन ही राखो गोय।
सुनी इठलैहैं लोग सब, बांटी न लेंहैं कोय।।

रहिमन नीर पखान, बूड़े पै सीझै नहीं।
तैसे मूरख ज्ञान, बूझै पै सूझै नहीं।।

राम न जाते हरिन संग से न रावण साथ।
जो रहीम भावी कतहूँ होत आपने हाथ।।

कहा करौं बैकुंठ लै, कल्प बृच्छ की छाँह।
रहिमन ढाक सुहावनो, जो गल पीतम बाँह।।

दादुर, मोर, किसान मन, लग्यौ रहै धन मांहि।
पै रहीम चाकत रटनि, सरवर को कोउ नाहि।।

धन थोरो इज्जत बड़ी, कह रहीम का बात।
जैसे कुल की कुलवधु, चिथड़न माहि समात।।

प्रीतम छवि नैनन बसि, पर छवि कहां समाय।
भरी सराय रहीम लखि, आपु पथिक फिरि जाय।।

रहिमन अंसुवा नयन ढरि, जिय दुःख प्रगट करेइ।
जाहि निकारौ गेह ते, कस न भेद कहि देइ।।

दुरदिन परे रहीम कहि, भूलत सब पहिचानि।
सोच नहीं वित हानि को, जो न होय हित हानि।।

रहिमन कबहुं बड़ेन के, नाहिं गरब को लेस।
भार धरे संसार को, तऊ कहावत सेस।।

जो रहीम दीपक दसा, तिय राखत पट ओट।
समय परे ते होत है,याही पट की चोट।।

रहिमन विद्या बुद्धि नहीं, नहीं धरम जस दान।
भू पर जनम वृथा धरै, पसु बिन पूंछ विषान।।

रहिमन पर उपकार के, करत न यारी बीच।
मांस दियो शिवि भूप ने, दीन्हो हाड़ दधीच।।

करम हीन रहिमन लखो, धँसो बड़े घर चोर।
चिंतत ही बड़ लाभ के, जागत ह्वै गो भोर।।

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